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देश के वैज्ञानिकों ने शुक्रवार को दूसरे नौवहन उपग्रह 'भारतीय
क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली-1बी' (IRNSS-1B) को पृथ्वी की कक्षा में
स्थापित कर दिया। इसे आंध्र प्रदेश के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से घरेलू
तकनीक से निर्मित प्रक्षेपण यान से अंतरिक्ष में भेजा गया।
उपग्रह को लेकर एक प्रक्षेपण यान ने ठीक अपराह्न् 5.14 बजे अंतरिक्ष के लिए प्रस्थान किया।
यह उपग्रह नौवहन प्रणाली के तहत छोड़े जाने वाले कुल सात उपग्रहों में से एक
है। इसे सफलता पूर्वक कक्षा में स्थापित करने के साथ ही देश कुछ गिने-चुने
देशों में शामिल हो गया है, जिसके पास इस तरह की प्रणाली है।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस सफलता की सराहना करते हुए कहा, "देश को
आईआरएनएसएस से अत्यधिक लाभ मिलेगा, जिसमें जमीनी, आकाशीय, समुद्री नौवहन,
आपदा प्रबंधन, वाहनों की निगरानी और वाहनों के बेड़े का प्रबंधन शामिल है।"
चेन्नई से 80 किलोमीटर उत्तर आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश
धवन अंतरिक्ष केंद्र से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान-सी24 (पीएसएलवी-सी24)
ने उपग्रह को लेकर 5.14 मिनट अपराह्न् पर अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी। यह
प्रक्षेपण यान 44.4 मीटर लंबा और 32० टन वजनी था। उपग्रह का भार 1,432
किलोग्राम है।
उड़ान के करीब 20 मिनट बाद अंतरिक्ष यान ने धरती से करीब 5०० किलोमीटर की
ऊंचाई पर उपग्रह को कक्षा में स्थापित किया। इस घटना को देखकर वैज्ञानिकों
ने राहत की सांस ली और तालियां बजाकर अभियान की सफलता का जश्न मनाया।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के. राधाकृष्णन ने कहा,
"2014 के आखिर तक हम दो और नौवहन उपग्रह-आईआरएनएसएस-1सी और आईआरएनएसएस-1डी
को छोड़ेंगे। 2015 के शुरू में तीन और उपग्रह छोड़े जाएंगे। 2015 के मध्य तक
देश के पास संपूर्ण नौवहन उपग्रह प्रणाली हो जाएगी।"
उपग्रह का नियंत्रण कर्नाटक के हासन में स्थित मिशन कंट्रोल फैसिलिटी (एमसीएफ) ने अपने हाथ में ले लिया।
इस क्रम में पहला नौवहन उपग्रह आईआरएनएसएस-1B जुलाई 2013 को छोड़ा गया था।
इस स्वदेशी नौवहन प्रणाली के उपयोगकर्ता देश के अंदर कहीं भी और देश की
सीमा से बाहर 1,500 किलोमीटर तक संबद्ध वस्तुओं की वास्तविक भौगोलिक स्थिति
का पता लगा सकते हैं।
भारतीय नौवहन प्रणाली अमेरिका की ग्लोबल पोजीशनिंग प्रणाली, रूस के
ग्लोनास, यूरोप के गैलीलियो, चीन के बैदू और जापान के क्वासी जेनिथ
सैटेलाइट प्रणाली के समान काम करती है।
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